खो भैठे

तुम्हें हमने बहुत ढूँढा,
रात के सन्नाटों में,
दिन की आवाज़ों में,

तुम्हें हमने बहुत ढूँढा,
बारिश की रिमझिम बूँदों में,
पतझड़ के सूखे पत्तों में,

तुम्हें हमने बहुत ढूँढा,
ग़म के अंधरों में,
खुशियों के उजालों में,

तुम्हें हमने बहुत ढूँढा,
पहाड़ों की शांति में,
शहरों की शोर में,

तुम्हें हमने बहुत ढूँढा,
इतना ढूँढा कि खुद को हम भूले,
अपनी परछाई से डर कर हम पूछे कि "तुम कौन हो अबे?" .

आज वक़्त ऐसा है  कि
तुम्हारी खोज में,
अपने आप को कहीं  हम खो भैठे |

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