ट्यूबलाइट और पतंगा

हूँ मैं एक पतंगा,
जलना है मेरा इरादा,
दिखी मुझे एक रोशिनी,
बावला मैं हो गया, कोई होश नहीं,
टकराता मैं रहा तुमसे ओ ट्यूबलाइट,
खुद से ही जंग मैं लड़ता रहा,
ये सफ़ेद चमक मेरे पंख क्यों नहीं जलाती ?
कैसी यह पहेली है ?
शमा से पतंगे तो जल्दी मिलते थे,
फिर ओ मीर, ये क्या हो गया है इस शमा को ?
जलती तो है पर इसमें आग नहीं,
प्यार भी आज कल ऐसा ही हो गया है,
रूह मांगती है आज़ादी पर शमा बेफिक्र है,
एक तरफ़ा इश्क़ है जनाब,
मरेगा ये पतंगा एक दिन, बिना जाने कुछ जवाब |




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