चाय पीतें हैं

मिलते थे हम अक्सर,
दिन में एक दो बार मुख़्तसर,
ग़म में, ख़ुशी में या बिना किसी वजह के,
गप्पे हम लड़ाते थे कई, बिना समझ के,
कांच के गिलास में तुम आती थी,
मेरी नींद व् थकान दूर भगाती थी,
आज मुझे कहना पढ़ रहा है तुम्हे अलविदा,
" इट्स नॉट यू " वाला फिर पढ़ना पड़ेगा क़सीदा,
इलायची, अदरक हैं गहने तुम्हारे,
पर याद रखना तुम कभी निकल न पाओगी दिल से हमारे,
अरे ओ चाय की पियाली,
तुम थी हमेँ बहुत प्यारी,
बढ़ो आगे ढूंढ़ो कोई और इंसान,
यह नही तोह कोई और दूकान.

Comments